22 सितंबर 2021

उत्तर प्रदेश का इतिहास

उत्तर प्रदेश का इतिहास | उत्तर प्रदेश उत्तर भारत का एक राज्य है | यह भारत में सबसे अधिक जनसँख्या वाला राज्य है. राज्य की प्रशासनिक तथा विधायिक राजधानी लखनऊ तथा न्यायिक राजधानी प्रयागराज है. 

उत्तर प्रदेश का इतिहास 

उत्तर प्रेदेश भारत का एक राज्य है. यह भारत की सर्वाधिक जनसँख्या वाला राज्य है. प्रशासनिक सुधिवओं को ध्यान में रखते हुए इस राज्य को 75 जिलों तथा 17 मंडल में बांटा गया है. 9 नवम्बर 2000 ई. को इस जिले के पहाड़ी क्षेत्र को विभाजित कर एक नए राज्य उतराखंड का गठन किया गया था. 

संसार के प्राचीनतम शहरों में से एक शहर वाराणसी इसी राज्य में स्थित है. समय के साथ-साथ यह जिला छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गया तथा बाद में यह बड़े-बड़े साम्राज्य जैसे की गुर्जर-प्रतिहार, गुप्त, मौर्य तथा कुषाण आदि साम्राज्यों का मुख्य भाग बन गया था. 7वीं सदी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का केंद्र था. 

यहाँ पर 1000-1030 ई. में मुसलमानों का आक्रमण आरंभ हो गया था, किन्तु भारत में 12वीं सदी के बाद ही मुस्लिम साम्राज्य की स्थापना हुई थी. 650 सालों तक अधिकांश उत्तर प्रदेश मुस्लिम शासकों के अधीन रहा था. in शासकों का केंद्र वर्तमान दिल्ली या उसका कोई नजदीकी इलाका था. 

लगभग 75 वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश धीरे-धीरे अंग्रेजों के अधीन आ गया था. 1856 ई. में कंपनी ने अवध पर कब्ज़ा कर लिया था. 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई की महत्वपूर्ण भूमिका थी. उन्होंने डटकर अंग्रेजों का सामना किया था.

जब देश आजाद हुआ तो 1947 ई. में संयुक्त प्रान्त को भारतीय प्रान्त की प्रशासनिक इकाई बना दिया गया था. 24 जनवरी 1950 ई. को संयुक्त भारत का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश कर दिया गया और इसे एक राज्य का दर्जा प्रदान किया गया था.

यहाँ के प्रथम मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंत थे. अक्टूबर 1963 ई.  को सचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश तथा भारत की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनीं थी. 



11 अगस्त 2021

PM मोदी ने वाराणसी प्रशासन से फोन पर की बात, बाढ़ संबंधी हालात का लिया जायजा

 आज की न्यूज़ उत्तर प्रदेश 

अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी (Varansi) में बाढ़ संबंधी हालात (Flood Situation) को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां के प्रशासन से विस्तृत जानकारी ली. पीएम मोदी फोन कर स्थिति का जायजा लिया और हर संभव मदद दिलाने का आश्वासन दिया.

दरअसल, राजस्थान और मध्य प्रदेश में हुई बारिश और बांधों से छोड़े गए पानी से यूपी के कई जिलों में नदियां उफान पर हैं. उफनाई नदियों के गुस्से से वाराणसी भी अछूता नहीं है. वाराणसी में गंगा खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और अभी भी लगातार जलस्तर बढ़ रहा है. जिससे न केवल शहरी इलाके, बल्कि गांव में भी जलप्रलय जैसे हालात पैदा हो गए हैं. 

सब्जियों की खेती के लिए खास तौर से मशहूर वाराणसी के रमना गांव की स्थिति तो ऐसी है कि यहां आधे से ज्यादा गांव जलमग्न हो चुके हैं और गांव के खेत के ज्यादातर हिस्से में गंगा का पानी आ जाने से वहां नाव चल रही है.

गांववालों ने कहा था - नहीं करेंगे मतदान

ग्राम प्रधान की अगुवाई में ग्रामीणों ने तटबंध न बनने की स्थिति में 2022 विधानसभा चुनाव में मतदान के बहिष्कार की चेतावनी भी दे दी है. इस संबंध में एक खबर प्रकाशित की थी. अब पीएम मोदी ने खुद फोनकर स्थिति का जायजा लिया है.

वाराणसी के रोहनिया विधानसभा का रमना गांव लंका क्षेत्र में आता हैं. बाढ़ की मार गांव की लगभग 40 हजार की आबादी को झेलनी पड़ रही है. गांव को जोड़ने वाले दो मार्ग जलमग्न हो चुके है. सिर्फ एक ही सड़क मार्ग से गांव में आवागमन हो पा रहा है. 

वाराणसी में गंगा में लगातार बढ़ाव जारी है और गंगा खतरे के निशान से आधे मीटर से भी ऊपर बह रही है. जिसके चलते रमना गांव का आंगनबाड़ी केंद्र, स्वास्थ्य उपकेंद्र, सामुदायिक शौचालय और गंगा किनारे अंत्येष्टि स्थल जलमग्न हो चुके हैं. गांव की 70 प्रतिशत आबादी सब्जियों की खेती पर ही निर्भर करती है लेकिन गंगा में आई बाढ़ के चलते आधे से ज्यादा खेत डूब चुके हैं.

यहां के निवासी सुजीत सिंह ने बताया कि आपदा के बाद मुआवजा के लिए सर्वे अंग्रेजी हुकूमत की तरह होता है, जिससे कभी दो सौ, ढाई सौ या पांच सौ रूपए ही कुछ किसानों को मिल पाता है. उन्होंने बताया कि बगैर तटबंध बनाए उनके गांव में बाढ़ के पानी को रोका नहीं जा सकता. 

तटबंध बनाने का सर्वे भी पहले हो चुका है. अभी के बाढ़ में इस बार कोई भी विधायक या मंत्री या अधिकारी उनके गांव में नहीं आया है. जबकि गांव में बाढ़ आए एक हफ्ते से अधिक हो चुका है.